पाई-(π) और गौर गोपाल दास जी के साथ मेरा सानिध्य

बचपन से ही मैं “पाई” (π) का अध्ययन कर रहा हूँ—22/7 या फिर 3.14159265359, जिसे अक्सर हम 3.14 के रूप में भी इस्तेमाल करते हैं। गणित की किसी भी कक्षा या किताब में इसकी चर्चा जरूर मिलती है। मजे की बात ये है कि यह एक वेरिएबल है, लेकिन इसे एक कॉन्स्टेंट माना जाता है। यानी, इसकी कीमत कभी बदलती नहीं है, यह हर गणना में स्थिर रहता है। पाई हमेशा अपनी जगह पर अडिग होता है, जैसे यह हमारे गणितीय संसार का आधार है।

यह सोचते हुए एक और दिलचस्प बात मेरे मन में आई। जैसे पाई हमारे गणित में अपरिवर्तनीय है, वैसे ही हमारे जीवन में भी कुछ ‘पाई’ होते हैं—जिन्हें हम बदल नहीं सकते। हमारे जीवन में ये पाई हमारी पत्नी, बच्चे, रिश्तेदार, पड़ोसी और उनके कचर-कचर, बेमतलब की बातें, और न जाने क्या-क्या हो सकते हैं। ये लोग और उनकी बातें एक प्रकार से हमारे जीवन में अपरिवर्तनीय हिस्सा हैं, जिनका हम ज्यादा कुछ नहीं कर सकते। चाहे हम कितना भी चाहें, इनसे मुंह मोड़ना या इन्हें बदलना हमारे बस में नहीं है। ये हमारे जीवन के वे “स्थिरांक” हैं, जिनकी उपस्थिति का हमें स्वीकार करना पड़ता है, जैसे पाई की गणित में उपस्थिति।

मगर यहाँ एक और बात गौर करने वाली है। गणित के प्रश्नों को हल करते समय हम पाई को लेकर सिरदर्द नहीं करते, क्योंकि हम जानते हैं कि इसे बदलना हमारे हाथ में नहीं है। इसके बजाय, हम “एक्स” (x) पर ध्यान केंद्रित करते हैं, जो एक वेरिएबल है, और जिसे हम बदल सकते हैं। जीवन में भी ऐसा ही है। अगर हम उन अपरिवर्तनीय चीजों पर ध्यान केंद्रित करना बंद कर दें—जिन्हें हम नहीं बदल सकते, जैसे पाई—और उन चीजों पर ध्यान दें जिन्हें हम बदल सकते हैं, यानी अपने जीवन के “एक्स” वेरिएबल पर, तो जीवन की ढेरों समस्याएँ अपने आप हल हो जाएंगी।

यह “एक्स” कोई पूर्व गर्लफ्रेंड नहीं है (मजाक कर रहा हूँ), बल्कि यह उन संभावनाओं का प्रतीक है जो हमारे जीवन में मौजूद हैं। जीवन में कई ऐसी चीजें हैं जिन्हें हम बदल सकते हैं, उनके लिए प्रयास कर सकते हैं। चाहे वह हमारा करियर हो, हमारे रिश्ते हों, या हमारे खुद के अंदर के विचार। अगर हम उन वेरिएबल्स पर काम करना शुरू कर दें, तो जिन समस्याओं को हम अनसुलझा समझते हैं, वे धीरे-धीरे खत्म हो जाएंगी।

मैंने यह सबक गौर गोपाल जी से सीखा, जब शनिवार, 5 अक्टूबर की शाम 5:30 बजे  उनके सानिध्य में था | महज 4 फिट की दूरी पर | हम दोनों हाथ आगे करते तो हैंडशेक हो जाता | मेरे लिए ये एक अनुपम पल था | उन्होंने यह समझाया कि जीवन में पाई को बदलने की कोशिश करने से बेहतर है, हम उन चीजों पर ध्यान दें जिन्हें हम बदल सकते हैं। पाई तो वही रहेगा, लेकिन “एक्स” पर ध्यान देने से हमारे जीवन की बहुत सी समस्याएँ हल हो सकती हैं। यह सबक न केवल गणितीय दृष्टिकोण से उपयोगी है, बल्कि जीवन में भी इसे अपनाने से हमें शांति और संतुलन मिल सकता है।

यह एहसास एक नई दृष्टि की तरह था—जैसे गणित और जीवन दोनों का सार एक ही हो। गणित के कठिन सवालों की तरह, जीवन की चुनौतियाँ भी तभी हल होती हैं, जब हम सही जगह पर ध्यान केंद्रित करें।

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